Skip to main content

हवन की विधि और महत्व, Havan ki vidhi

हवन की विधि और महत्व
Hawan Vidhi at home

हवन कुंड मंत्र साधना विधि, havan mantra in hindi, havan vidhi at home, hawan vidhi at home, hawan havan mantra in hindi. mantra for havan


हवन शुरू करने की विधि और मंत्र (Havan shuru karne ka mantra aur vidhi)- कई साधक ऐसे होते हैं जो हवन करने की जटिल प्रक्रिया, मुश्किल से मिलने वाली सामग्री और संस्कृत के कठिन श्लोकों के कारण हवन नहीं कर पाते हैं| हम आपको यहाँ हवन की बहुत सरल विधि बताएंगे, इस विधि से आप खुद आसानी से मिलने वाली सामग्री के साथ हवन कर सकते हैं| यह जो विधि बताई जा रही है इसका प्रयोग शांति कर्म और देव हवन के लिए करना है| नवग्रह हवन, तामस हवन और कौड़ा हवन का प्रयोग अलग विधि और सामग्री से होता है| इसके लिए आप अलग से हमारे ब्लॉग पर विधि विधान देख सकते हो| 

हवन का महत्व- हिन्दू धर्म में हवन का बहुत महत्व है| हिन्दू धर्म में 4 प्रमुख यज्ञ का वर्णन है, उसमें से हवन यज्ञ या देव यज्ञ को सबसे प्रमुख स्थान प्राप्त है| हिन्दू धर्म में 4 यज्ञ का नाम मनुष्य यज्ञ, पितर यज्ञ, भूत यज्ञ और देव यज्ञ है,  इसमें मनुष्य यज्ञ पृथ्वी के लोगों की भलाई के लिए किया जाता है, पितर यज्ञ स्वर्ग सिधार चुके पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, भूत यज्ञ पृथ्वी के पशु-पक्षियों के कल्याण के लिए किया जाता है और देव यज्ञ देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, इस देव यज्ञ को ही हवन यज्ञ कहा जाता है| देवताओं तक भक्ति, उनके लिए भोग, वस्त्र इत्यादि सामग्री पहुँचाने के लिए हवन यज्ञ किया जाता है| अपने देखा होगा के जब कोई हवन करता है तो किसी देवता का मंत्र उच्चारण करके उस मंत्र के आखिर में स्वाहा बोलकर हवन कुंड में आहुति दी जाती है | यह 'स्वाहा' देवी का नाम है और यह अग्नि देव की पत्नी है, जब हम हवन करते है तो अग्नि देवता को प्रकट कर उसमें किसी देवता का मंत्र बोलकर आखिर में स्वाहा का उच्चारण करके उस देवता तक अग्नि देव और स्वाहा देवी द्वारा सामग्री, भोग, वस्त्र इत्यादि उन तक पहुँचाते हैं|
अब हवन के वैज्ञानिक महत्व की बात करें तो हवन में जो आम की समधा(लकड़ी) का उपयोग होता है| रिसर्च से पता चलता है के जब आम की लकड़ी जलती है तो उसमें से फार्मिक एलडीहाईड नामक गैस का उत्सर्जन होता है, जिससे हमारे पर्यावरण में बैक्टीरिया और जीवाणु नष्ट होते हैं, इसके अतिरिक्त जो सामग्री हवन में प्रयोग होती है उससे भी पर्यावरण शुद्ध होता है| हिन्दू धर्म के अनुसार आप अपने जिस किसी भी इष्ट का जितना भी जाप करते हो उसका दशांश(दसवां हिस्सा) हवन करना अविवार्य है| 

हवन में प्रयोग होने वाली वस्तुएं- 
1. हवन कुंड ( कोई छोटा लोहे का)
2. समधा(लकड़ी)- आम और बेरी की 
3. जल का लोटा- गंगा जल और तुलसी डाल ले 
4. एक कपूर 
हवन सामग्री 
हवन सामग्री-    1 पैकेट 
लोंग-इलाइची -  10-10 दाने 
काले तिल-       100 ग्राम 
जों-                 100 ग्राम
पंच-मेवा-          यथा शक्ति अनुसार 
चावल -            50 ग्राम 
देसी घी-           50 ग्राम 
ऊपर दी गई सभी हवन सामग्री को एक खुले बर्तन में देसी घी के साथ मिलाकर उसका मिश्रण तैयार कर ले, अब आपकी आहुति देने के लिए हवन सामग्री तैयार हो चुकी है| 
अब अपने हवन कुंड को स्वच्छ स्थान पर रखकर उसके बीच गंगाजल के थोड़े छींटे लगाकर शुद्ध कर लेना है| हवन कुंड इस तरह स्थापित करना है कि जब आप आहुति देने बैठे तों आपका मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए 
हवन की शुरुआत- हवनकुंड में समधा(लकड़ी) लगाकर कपूर के साथ अग्नि प्रचंड करनी है| जब तक अग्नि पूरी तरह से प्रचंड होती है तब तक अपने तीन आचमन(चरणामृत) तीन मंत्र बोलकर लेनी है| मंत्र इस प्रकार हैं ॐ केशवाय: नमः, ॐ नारायणाय: नमः, ॐ माधवाय: नमः| इसके बाद थोड़ा जल लेकर हाथ शुद्ध करने हैं और एक द्रुभ से गंगाजल से नीचे दिए मंत्र को पढ़ते हुए खुद पर और चारों और छिड़क कर शुद्धि करनी है|

हवन से पहले शुद्धि का मंत्र- ॐ अपवित्र: पवित्रो सर्वावस्थां गतोपिवा य: स्मरेत पुण्डरीकाक्ष स: वाह्यभ्यतरे: शुचि:|

इसके बाद आपने नीचे दिए हुएअग्नि प्रज्वल करने का मंत्र पढ़ते हुए कपूर से अग्नि को प्रज्वलित कर लेना है|

अग्नि प्रज्वल करने का मंत्र:- चंद्रमा मनसो जात: तच्चक्षो: सूर्यअजायत श्रोताद्वायुप्राणश्च मुखादार्गिनजायत| 


आहुति देते वक़्त शुरुआत में बोले जाने वाले मंत्र - 1-1 आहुति देनी है 

ॐ गुरवे: नमः स्वाहा 
ॐ गणेशाय: नमः स्वाहा 
ॐ कुलदेवाय: नमः स्वाहा 
ॐ इंद्राय: नमः स्वाहा 
ॐ अग्निदेवाय: नमः स्वाहा 
ॐ प्रजापति: नमः स्वाहा 
ॐ नवग्रह: नमः स्वाहा 

यह आहुतियाँ देने के बाद आप अपने इष्ट देवता या देवी जिस मंत्र का आप रोज़ाना जाप करते हो उसकी जितनी माला की आहुति देनी है आप दें सकते हो| आपने मंत्र पढ़कर आखिर में स्वाहा बोलकर आहुति अग्निकुंड में दाल देनी है |दाएं हाथ से माला पकड़नी है और बाएं हाथ से आहुति देनी है| जब आपकी आहुति देने की प्रकिर्या ख़तम हो जाए तो आपने यदि भोग लगाने के लिए कोई प्रसाद रखा है तो थोड़ा प्रसाद लेकर मंत्र बोलकर उसकी अग्नि में आहुति दें देनी है और अब अपने और अपने परिवार की सुख-शांति के लिए प्रार्थना करके अग्नि देव को नमस्कार करके उठ जाना है| जो लोटे में जल बचा होगा उसका सभी परिवार वालों ने आचमन करना है और बाकी जल के घर में छींटे देने है| यदि आप सम्य सम्य पर इस सरल विधि से हवन करते रहोगे तो आप अपने इष्ट देव को प्रसन्न कर अपने सभी कार्य सिद्ध कर सकते हो | 

नोट- नवग्रहों के बीज मंत्र की विधि|

*सूर्य बीज मंत्र   *चंद्र बीज मंत्र    *मंगल बीज मंत्र 

*बुध बीज मंत्र   *गुरु बीज मंत्र    *शुक्र बीज मंत्र 

*शनि बीज मंत्र  *राहु बीज मंत्र    *केतु बीज मंत्र 

कुंडली दिखाए:- आप घर बैठे कुंडली का विश्लेषण करा सकते हो। सम्पूर्ण कुंडली विश्लेषण में लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली, नवमांश कुंडली, गोचर और अष्टकवर्ग, महादशा और अंतरदशा, कुंडली में बनने वाले शुभ और अशुभ योग, ग्रहों की स्थिति और बल का विचार, भावों का विचार, अशुभ ग्रहों की शांति के उपाय, शुभ ग्रहों के रत्न, नक्षत्रों पर विचार करके रिपोर्ट तैयार की जाती है। सम्पूर्ण कुंडली विश्लेषण की फीस मात्र 500 रुपये है।  Whatsapp-8528552450 Barjinder Saini (Master in Astrology)


यदि आप घर बैठे फ्री में ज्योतिष शास्त्र सीखना चाहते हो तो हमारे पेज Free Astrology Classes in Hindi पर क्लिक करें| 

Comments

Popular posts from this blog

लहसुनिया रत्न धारण करने के लाभ- Cats eye Stone Benefits in hindi

लहसुनिया रत्न धारण करने के लाभ Cats Eye Stone Benefits in hindi लहसुनिया रत्न धारण करने के लाभ और पहचान (Cats Eye Stone Benefits) - लहसुनिया रत्न केतु ग्रह को बल देने के लिए धारण किया जाता है। जब कुंडली में केतु ग्रह किसी शुभ भावेश की राशि और शुभ भाव में विराजित हो तब केतु का रत्न लहसुनिया धारण करना चाहिए। यदि कुंडली में केतु की स्थिति बुरे भावेश या बुरे भाव में हो तब केतु का रत्न लहसुनिया धारण नहीं करना चाहिए। इसलिए केतु का रत्न धारण करने से पहले किसी अच्छे ज्योतिष की परामर्श ले लेनी चाहिए। यदि कुंडली में केतु की स्थिति अच्छी है तो लहसुनिया रत्न धारण करने से व्यक्ति अध्यात्म की और तरक्की करता है और यह धारण करने से व्यक्ति की नकारत्मक शक्तियों से रक्षा होती है और स्वास्थ्य व् आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। हम आगे आपको लहसुनिया रत्न धारण करने के नियम और लाभ बताते हैं।   लहसुनिया रत्न गोमेद धारण करने के नियम - लहसुनिया रत्न धारण करने से पहले आपको यह समझना होगा कि केतु ग्रह की स्थिति को कुंडली में कैसा देखा जाता है और कौन सी स्थिति में केतु अच्छे फल देता है और कौन सी स्थिति में क...