Skip to main content

Lesson-4 कुंडली के बारह भाव, Kundli ke 12 bhav

  कुंडली के बारह भाव (Kundali ke 12 bhav)



Kundli ke 12 bhav
चित्र नंबर.1
यह जो आप ऊपर कुंडली के बारह भाव देख रहे हो, असल में यह आकाश को बारह भागों में बांटा गया है| ज्योतिष विज्ञान में आकाश के 360° अंश(Degree) के नक़्शे को कुंडली के बारह भावों को बारह राशिओं में बांटा गया है और प्रत्येक भाव किसी एक राशि का भाव होता है| पंचांग के द्वारा किसी व्यक्ति के जन्म के सम्य और स्थान के मुताबिक उस सम्य ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यक्ति की जन्म लग्न कुंडली बनाई जाती है और उस सम्य अथवा स्थान के हिसाब से उस सम्य जो ग्रहों और राशिओं की स्थिति होती है उसको इस लगन कुंडली में लिखा जाता है| प्रत्येक भाव में कोई गृह 30° अंश(Degree) तक चलता है और फिर अगले भाव में चला जाता है, अंश(Degree) के बारे में हम आगे पढ़ेंगे| कुंडली देखने के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण जन्म लगन कुंडली होती है इसके साथ ही हम व्यक्ति की जन्म के सम्य के ग्रहों की स्थिति देख सकते हैं|ऊपर जैसे हमने कुंडली दिखाकर बताया है के भावों को कुंडली में लिखते कैसे हैं, अपने इस प्रथम भाव से द्वादश भाव तक कैसे क्रमांक इन भावों की गणता करनी है यह अच्छी तरह जान लेना है| किसी व्यक्ति की जिंदगी की विस्तृत गणता हम जन्म लगन कुंडली से ही करते हैं, इसलिए अपने अभी लगन कुंडली को दिमाग़ में रखकर पढ़ना है, चंद्र कुंडली, नवमांश कुंडली के बारे में अभी विचार नहीं करना, उसका आगे पढ़ाया जाएगा|अब हम आगे पढ़ेंगे के कुंडली के प्रथम भाव से लेकर द्वादश भाव तक प्रत्येक भाव में क्या विश्लेषण किया जाता है|


1. कुंडली का प्रथम भाव( kundali ka pratham bhav):- कुंडली के प्रथम भाव से हम व्यक्ति का शरीर, रंग, आकृति, स्वाभाव, विनम्रता, स्वास्थ्य, मन पर विचार किया जाता है| प्रथम भाव शरीर के मस्तिष्क को प्रभावित करता है|
2. कुंडली का द्रितीय भाव ( kundali ka dritya bhavbhav):- द्रितीय भाव से हम व्यक्ति की वाणी, धन, ससुराल, कुटुंब(परिवार ) और चल संपत्ति को देखते हैं|द्रितीय भाव शरीर के दाएं नेत्र और जिव्हा को प्रभावित करता है |
3. कुंडली का तृतीय भाव ( Kundali kaTritya Bhav):- तृतीय भाव से हम व्यक्ति के छोटे भाई बहन, व्यक्ति का पराकर्म, धैर्य  और आयु पर विचार करते हैं| यह भाव शरीर के गला एवं श्वास सबंधी रोगों को प्रभावित करता है|
4. कुंडली का चतुर्थ भाव (Kundali ka Chaturth Bhav):- चतुर्थ भाव को सुख-सुविधाओं का भाव भी कहा जाता है| इस भाव से व्यक्ति के सुख, भवन(घर), वाहन(गाड़ी), अचल संपत्ति, भूमि, गाड़ा हुआ धन और माता पर विचार किया जाता है| इस भाव से हम शरीर में शाती, फेफड़ों पर विचार करते हैं|
5. कुंडली का पंचम भाव(Kundali ka Pancham Bhav):- पंचम भाव में हम व्यक्ति की संतान, विद्या, बुद्धि, प्रेम सम्बन्ध, अचानक धन लाभ या हानि पर विचार करते हैं| यह शरीर में पेट को प्रभावित करता है|
6. कुंडली का षष्ठ भाव(Kundali ka Shashath Bhav):- षष्ठ भाव को कुंडली में अच्छा भाव नहीं माना जाता,  यहाँ पर योग कारक गृह भी आकर बुरा फल देते है, जब तक उनके ऊपर विपरीत राज्य योग की स्तिथि लागू ना होती हो| इसमें व्यक्ति के शत्रु, चिंता, रोग, ऋण(कर्ज़ा), मुकदमेबाज़ी, अपजश और शौक पर विचार किया जाता है| यह शरीर के मूत्र स्थान के ऊपरी भाग को प्रभावित करता है|
7. कुंडली का सप्तम भाव (Kundali ka Saptam Bhav):- इस भाव से हम व्यक्ति के जीवनसाथी, विवाह, रोज़ाना की आमदनी, हिस्सेदारी(Partnership), काम वासना पर विचार किया जाता है| यह शरीर के मूत्र वाले भाग को प्रभावित करता है|
8. कुंडली का अष्टम भाव(Kundali ka Ashtam Bhav):- यह कुंडली का सबसे ख़तरनाक और बुरा भाव माना जाता है, इसको हम मृत्यु का भाव भी कहते हैं, जिसका अर्थ होता है के यदि इस भाव में मारक गृह जा नींच गृह बैठ जाए तो वह व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट देता है, मगर विपरीत राज्य योग स्तिथि से भी इस घर में गृह अच्छे फल देते हैं| इस घर से व्यक्ति की आयु, मृत्यु, दुर्घटना, परेशानियां, तांत्रिक साधना  आदि पर विचार किया जाता है|यह भाव शरीर के मूत्र स्थान के निचले भाग को प्रभावित करता है|
9. कुंडली का नवमं भाव(Kundali ka Navam Bhav):- इस भाव से हम व्यक्ति के भाग्य, तीर्थ यात्रा, धर्म, धार्मिक वृति, सन्यास, साला-साली, पिता के साथ सम्बन्ध पर विचार किया जाता है|यह भाव शरीर की जांघों को प्रभावित करता है|
10. कुंडली का दशम भाव ( Kundali ka dasham bhav):- दशम भाव से हम कारोबार, नौकरी, पद, राजयोग का विचार करते हैं| यह भाव शरीर के घुटनों को प्रभावित करता है|
11. कुंडली का एकादश भाव(Kundali Ka ekadash bhav):- इस भाव से हम व्यक्ति की आय, धन लाभ, मनोकामना की पूर्ति, बड़े भाई-बहन पर विचार किया जाता है|यह भाव शरीर की पिंडलिओं और कान को प्रभावित करता है|
12. कुंडली का द्वादश भाव(Kundali ka dwadash bhav ):- इस भाव से हम व्यक्ति के व्यय(खर्चे), हानि,  हस्पताल के खर्चा, विदेश सेटलमेंट, जेल यात्रा पर विचार करते हैं| यह भाव शरीर के बाए नेत्र और पैरों को प्रभावित करता है|

कुंडली में बारह राशियां (12 Zodiac in Horoscope):-
चित्र नंबर.2
कुंडली में जो 12 भाव होते हैं उन भावों में कोई ना कोई नंबर जरूर लिखा होता है| जैसा आप ऊपर चित्र नंबर 2 में देख रहे हो, यह नंबर राशि के नंबर होते हैं| यह गिनती 1 से 12 तक होती है और प्रत्येक नंबर किसी राशि का होता है| यदि आपकी कुंडली के प्रथम भाव में 5 नंबर लिखा है तो अपने जान लेना है के यह सिंह राशि है और यदि प्रथम भाव में 1 नंबर लिखा हैं तो समझ लेना हैं कि मेष राशि हैं| 12 नंबर तक की राशिओं की जानकारी आपको आगे मिलेगी| यदि कुंडली के प्रथम भाव में 6 नंबर लिखा है तो आपने समझ जाना है कि यह कन्या राशि लगन की कुंडली है| प्रथम भाव में नंबर चाहे कोई भी लिखा हो, मगर जब कुंडली के 12 भावों पर विचार करना है तब अपने प्रथम भाव को पहला भाव ही मानना है कुंडली में राशि नंबर बदलने से भाव नहीं बदलते|

कुंडली में बारह राशिओं के स्वामी ( Kundali mein 12 Rashi ke Swami):-मान लो कुंडली के प्रथम(लग्न) भाव में 5 नंबर लिखा है, इस तरह हम पहचान जाएंगे के प्रथम भाव में सिंह राशि है और प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहा जाता है और लग्न भाव कुंडली में प्रधानमंत्री की तरह काम करता है, यह लग्न सब भावों के ऊपर हकूमत करता है और इस तरह प्रथम भाव या लगन भाव में सिंह राशि हुई और प्रत्येक राशि का कोई ना कोई गृह स्वामी होता है, जैसे सिंह राशि का स्वामी सूर्य है| अब अपने जान लेना हैं कि अगर प्रथम भाव में 5 नंबर राशि है, तो 5 नंबर सिंह राशि को कहा जाता है और सिंह राशि का स्वामी सूर्य होता है| इस तरह से आपने कुंडली के भाव, उनके नंबर के मुताबिक राशियां और राशियों के स्वामी के बारे में अच्छी तरह से जान लेना है,कई 2 राशिओं का एक ही स्वामी होता है, जैसे राशि नंबर 2 (वृषभ ) और राशि नंबर 7(तुला)  दोनों का शुक्र स्वामी है| इसका आपको आगे पूरा विवरण देते हैं|

राशि नंबर.    राशि नाम             राशि का स्वामी
1.                      मेष                           मंगल
2.                      वृषभ                         शुक्र
3.                      मिथुन                         बुध
4.                      कर्क                           चंद्र
5.                      सिंह                           सूर्य
6.                      कन्या                          बुध
7.                      तुला                           शुक्र     
8.                      वृश्चिक                        मंगल
9.                       धनु                           बृहस्पति
10.                     मकर                         शनि
11.                     कुंभ                          शनि   
12.                     मीन                          बृहस्पति 

यहाँ  नंबर के मुताबिक उनके राशि नाम और राशिओं के स्वामी आपने अच्छी तरह याद कर लेने हैं|


कुंडली में गृह के अंश( Degree of Planets ):-
ज्योतिष शास्त्र में आपने सभी विष्यों को ध्यानपूर्वक पढ़ना है, यदि एक भी विष्य आपने छोड़ दिया तो आपकी कुंडली की गणता बिलकुल गलत हो जाएगी| अब हम आपको बताएँगे के कुंडली में गृह का अंश या डिग्री क्या होती है| आपने पढ़ा है के कुंडली के सभी 12 भावों को आकाश मानकर कुंडली बनाई गई है और सम्पूर्ण कुंडली 360° अंश की होती है इसी तरह  प्रत्येक भाव 30° अंश(Degree) का बनता है| आपने पढ़ा है कि कुंडली के भावों में गृह विचरण करते हैं, कुंडली में एक गृह 30°अंश तक चलता है और हम लगन कुंडली के नीचे देखते हैं कि ग्रहों की डिग्री लिखी होती है, व्यक्ति के जन्म के सम्य जो ग्रहों की स्थिति होती है पंचांग की मदद से उसको जन्म लगन कुंडली में लिख दिया जाता है, कोई गृह उस सम्य और स्थान के मुताबिक उस वक़्त कुंडली के जिस भाव में जितने अंश(Degree) चल चुका होता है यह उसकी स्तिथि होती है| सभी गृह की चलने की गति अलग अलग होती है जैसे सूर्य को एक भाव से दूसरे भाव तक जाने में 30 दिन लगते हैं वहीं चंद्र एक भाव से दूसरे भाव का सफर 2.5 दिन में पूरा करता है, ग्रहों की गति का विवरण आपको आगे देते हैं| अब इस डिग्री या अंश का महत्व समझ लीजिए| जब कोई गृह किसी भाव में प्रवेश करता है तब वह 0° डिग्री से अपना सफर शुरू करता है, तब उसमें बहुत कम बल होता है, मगर जैसे वह 10° डिग्री तक पहुँच जाता है तब उसका बल बहुत बढ़ जाता है और फिर 20° डिग्री से 30 डिग्री तक जाते उसका बल कम होता जाता है| इस तरह से जब कोई गृह किसी भाव में 2 डिग्री चला हो तब वह बाल अवस्था में होता है, ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति को अच्छा या बुरा फल बहुत कम देता है| किसी भी गृह का पूरा बल 10 डिग्री से 20 डिग्री तक मिलता है| 20° डिग्री के बाद गृह वृद्ध अवस्था में जाना शुरू हो जाता है, फिर उसका बल कम होता जाता है| अब इसका कुंडली में  विश्लेषण कैसे करना है, मान लो आपका जब जन्म हुआ तब शनि सप्तम भाव में  3° डिग्री पर विचर कर रहा है, तब आपकी जन्म कुंडली में उसकी डिग्री 3° लिखी जाएगी और वह आपकी पूरी जिंदगी आपको 3° के मुताबिक फल देगा| अब बात आती है कि अच्छा फल देगा या बुरा फल| इसमें आपको समझ लेना है कि यदि आपकी कुंडली में योग कारक गृह है तो वह आपने बल के हिसाब से अच्छा फल देगा यदि वह गृह मारक गृह है तो आपको बुरा फल देगा| मान लो यदि आपकी कुंडली में कोई मारक गृह 1° डिग्री(अंश ) का है, तो अब वह गृह सिर्फ 20-25 % ही बुरा फल देगा,  इसका आपको लाभ ही है और यदि कोई योग कारक गृह (अच्छा गृह) 1° का है तो यह आपके लिए अच्छा नहीं है क्योंकि योग कारक गृह अच्छा फल देते हैं, अब इस स्थिति में योग कारक गृह का बल बढ़ाने के लिए रतन धारण किया जाता हैं| रतन का कार्य कम डिग्री वाले या सूर्य से अस्त गृह के बल को बढ़ाना होता हैं| ऐसे ही यदि कोई गृह 10 डिग्री से 20 डिग्री का हैं तो वह अपना अच्छा या बुरा फल पूर्ण रूप से देगा, इस स्थिति में मारक गृह(बुरे गृह) का बल ग्रहों की पूजा या दान करके कम किया जाता हैं|इसका आपके आगे पढ़ाया जाएगा|
ग्रहों की गति( Grahon ki Gati):-यहाँ पर आपको बताया जाएगा के सभी गृह किस गति से एक भाव से दूसरे भाव तक जाते हैं अर्थात कोई गृह कुंडली के एक भाव से दूसरे भाव तक जाने में कितना सम्य लगाता हैं|

गृह                सम्य
सूर्य               30 दिन
चंद्र                2.5 दिन
मंगल             45 दिन
बुध                28 दिन
बृहस्पति         13 महीने
शुक्र               28 दिन
शनि               2.5 साल
राहु                18 महीने
केतु                18 महीने

नोट: राहु और केतु वक्री गृह होते हैं अर्थात यह विपरीत दिशा में चलते हैं |

कुंडली में त्रिक भाव(Kundali mein trik bhav)):-
Kundli mein trik bhav,
चित्र नंबर.3
आपको ऊपर चित्र नंबर.3 में बताया गया हैं के कुंडली में त्रिक भाव 6, 8 और 12 को कहा जाता हैं| यह कुंडली के अशुभ भाव माने जाते हैं, जब तक इनके ऊपर विपरीत राज योग की स्थिति लागू ना होती हो|

कुंडली में त्रिकोण भाव(Kundali mein Trikon Bhav):
Kundli mein trikon bhav, कुंडली में त्रिकोण भाव
चित्र नंबर.4
ऊपर दी गई  कुंडली के चित्र नंबर.4 में आपको बताया गया हैं कि 1, 5 और 9 को त्रिकोण भाव कहते हैं, यह कुंडली कि बहुत शुभ भाव होते हैं|

कुंडली में केंद्र भाव(Kundali mein kendra bhavbhav):- 
Kundli mein kendra bhav,  कुंडली में केन्द्र भाव
चित्र नंबर.5
कुंडली में चित्र नंबर.5 में बताया गया हैं कि 1, 4, 7 और 10 भाव को केंद्र भाव कहते हैं|

कुंडली दिखाए:- आप घर बैठे कुंडली का विश्लेषण करा सकते हो। सम्पूर्ण कुंडली विश्लेषण में लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली, नवमांश कुंडली, गोचर और अष्टकवर्ग, महादशा और अंतरदशा, कुंडली में बनने वाले शुभ और अशुभ योग, ग्रहों की स्थिति और बल का विचार, भावों का विचार, अशुभ ग्रहों की शांति के उपाय, शुभ ग्रहों के रत्न, नक्षत्रों पर विचार करके रिपोर्ट तैयार की जाती है। सम्पूर्ण कुंडली विश्लेषण की फीस मात्र 500 रुपये है।  Whatsapp-8528552450 Barjinder Saini (Master in Astrology)

यदि आप फ्री में ज्योतिष शास्त्र का ऑनलाइन कोर्स करना चाहते हो तो Free Astrology Course in hindi पर क्लिक करें|




Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

लहसुनिया रत्न धारण करने के लाभ- Cats eye Stone Benefits in hindi

लहसुनिया रत्न धारण करने के लाभ Cats Eye Stone Benefits in hindi लहसुनिया रत्न धारण करने के लाभ और पहचान (Cats Eye Stone Benefits) - लहसुनिया रत्न केतु ग्रह को बल देने के लिए धारण किया जाता है। जब कुंडली में केतु ग्रह किसी शुभ भावेश की राशि और शुभ भाव में विराजित हो तब केतु का रत्न लहसुनिया धारण करना चाहिए। यदि कुंडली में केतु की स्थिति बुरे भावेश या बुरे भाव में हो तब केतु का रत्न लहसुनिया धारण नहीं करना चाहिए। इसलिए केतु का रत्न धारण करने से पहले किसी अच्छे ज्योतिष की परामर्श ले लेनी चाहिए। यदि कुंडली में केतु की स्थिति अच्छी है तो लहसुनिया रत्न धारण करने से व्यक्ति अध्यात्म की और तरक्की करता है और यह धारण करने से व्यक्ति की नकारत्मक शक्तियों से रक्षा होती है और स्वास्थ्य व् आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। हम आगे आपको लहसुनिया रत्न धारण करने के नियम और लाभ बताते हैं।   लहसुनिया रत्न गोमेद धारण करने के नियम - लहसुनिया रत्न धारण करने से पहले आपको यह समझना होगा कि केतु ग्रह की स्थिति को कुंडली में कैसा देखा जाता है और कौन सी स्थिति में केतु अच्छे फल देता है और कौन सी स्थिति में क...